भूतिया मकान I bhootiya makan

ये एक सच्ची घटना पर आधारित है। ये कहानी आज से करीब 7 साल पहले की है पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर शहर में पश्चिम की ओर एक बहुत पुराना सा तालाब था। जहा पर लोग पहले शव को जलाने जाया करते थे। लेकिन शहरीकरण के कारण अब लोग उस तालाब के आस पास घर बनाने लगे थे।

तो इसी प्रकार एक व्यक्ति तालाब के किनारे ही अपना घर बनाने लगा। एक महीने के अंदर अंदर उसकी घर बन कर तैयार हो गई थी। अब उसमे दरवाजे और खिड़कियां लगाने की काम चल रही थी। वह मिस्त्री वहा अकेला ही काम कर रहा था की तभी उसके यंत्र अपने स्थान पर हिलते हुए दिखाई दिए। जिसे वह वहम समझ कर काम करने लगा। फिर थोड़ी देर बाद उसे खिड़कियां हिलती हुई दिखाई दी। तो उसे लगा की हो सकता है खिड़कियां हवा के कारण हिलती हो। इसलिए उसने इसे भी अनदेखा कर दिया। कभी कभी अजीबो गरीब आवाज भी आती थी लेकिन वो उसे भी अनसुना कर देता था।

इसी प्रकार की क्रियाएं दिन भर चलती रही लेकिन वह मिस्त्री वहा से नही भागा। इसी बीच वहा मकान मालिक आया। जिसे मिस्त्री ने सारी बाते बता दी। ये सारी बाते सुन कर मकान मालिक हंसने लगा। और ये सब कुछ नही है बता कर चला गया।

अब शाम हो चली थी। मिस्त्री अब अपना सारा सामान जमा कर जाने की तैयारी कर ही रहा था की उसे फिर से अजीबो गरीब आवाजे आने लगी। अब उसे थोड़ा थोड़ा डर लगने लगा था। अब वह जल्दी जल्दी खिड़किया बंद करने लगा ताकि वह जल्दी से वहा से बाहर निकल सके।

लेकिन ये क्या जब वह दूसरी खिड़की बंद करता तो पहली खुल जाती फिर पहली बंद करता तो दूसरी खुल जाती इस तरह की हरकत देख वह घर से बाहर भागने की सोचा। जैसे ही वह भागता हुआ दरवाजे की ओर गया दरवाजे अपने आप बंद हो गए । लाख कोशिश करने के बाद भी जब दरवाजे नही खुले तो उसने खिड़की की ओर भागा ताकि बाहर से किसी को बुला सके।

लेकिन सारी खिड़किया भी बंद हो गए। उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता । जब अगली सुबह मकान मालिक आया तो उस मिस्त्री को देख कर उसकी आंखे फटी की फटी रह गई , मानो किसी जानवर ने उसे नोच नोच कर मार डाला हो।
तब से आज तक वह घर उसी तरह पड़ा हुआ है। और अब यह खंडर में बदल गया है।